प्रेम
से लबालब कविता का
भाव हो तुम
रस हो तुम
ओर
'मै' शब्दों के बीच का
खालीपन
इस खालीपन भर सकती है
न तो धूप
न हवा
न पानी
न वेद की ऋचाएँ
न कोई शुक्ति वाक्य
इस रिक्त स्थान को
भर सकती हैं तो, बस
तुम्हारी खिलखिलाती हँसी
और
मेरे प्रति तुम्हारे
'प्रेम' की स्वीकृति
मुकेश इलाहाबादी ---------------
से लबालब कविता का
भाव हो तुम
रस हो तुम
ओर
'मै' शब्दों के बीच का
खालीपन
इस खालीपन भर सकती है
न तो धूप
न हवा
न पानी
न वेद की ऋचाएँ
न कोई शुक्ति वाक्य
इस रिक्त स्थान को
भर सकती हैं तो, बस
तुम्हारी खिलखिलाती हँसी
और
मेरे प्रति तुम्हारे
'प्रेम' की स्वीकृति
मुकेश इलाहाबादी ---------------
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