ये पहले तो, कुछ देर धुँवा देंगे
तुम हवा देते रहो, सुलग उठेंगे
यादों के अलाव जलाये रखो ये,
हिज़्र की सर्द रातों में मज़ा देंगे
बारिश की बूंदो से कंहा बुझेंगे
अंगार चाहत के, और दहकेंगे
मुहब्बत में खुशबू भी होती है
जित्ता दहकेंगे उतना महकेंगे
मुकेश इलाहाबादी -------------
तुम हवा देते रहो, सुलग उठेंगे
यादों के अलाव जलाये रखो ये,
हिज़्र की सर्द रातों में मज़ा देंगे
बारिश की बूंदो से कंहा बुझेंगे
अंगार चाहत के, और दहकेंगे
मुहब्बत में खुशबू भी होती है
जित्ता दहकेंगे उतना महकेंगे
मुकेश इलाहाबादी -------------
No comments:
Post a Comment