तू रात सा लिपट जाती है मै चाँद सा चमकने लगता हूँ
फिर जाने क्या होता है सुबह सूरज सा दहकने लगता हूँ
मुझे मालूम है मेरी सिफत पत्थर जैसी है, पर जाने क्यूँ
तेरी सोहबत में आते ही रंजनीगंधा सा महकने लगता हूँ
तेरी मुस्कुराहट सुहानी सुबह सी फ़ैल जाती है मुझमे और
अपने उदास घोंसले से उड़ मै परिंदे सा चहकने लगता हूँ
मुकेश इलाहाबादी ----------------------------------------
फिर जाने क्या होता है सुबह सूरज सा दहकने लगता हूँ
मुझे मालूम है मेरी सिफत पत्थर जैसी है, पर जाने क्यूँ
तेरी सोहबत में आते ही रंजनीगंधा सा महकने लगता हूँ
तेरी मुस्कुराहट सुहानी सुबह सी फ़ैल जाती है मुझमे और
अपने उदास घोंसले से उड़ मै परिंदे सा चहकने लगता हूँ
मुकेश इलाहाबादी ----------------------------------------
No comments:
Post a Comment