सुनता
हूँ तुम्हे प्रण -प्राण से
जब तुम कुछ नहीं बोल रही होती हो
जैसे कोई सुनता है
बहुत ऊपर से बहते हुए जल प्रपात की लहरों को
बस ऐसे ही सुनता हूँ
तुम्हारी चूड़ियों की खनक
जैसे कोई सुनता है
गर्मी की एकांत,चुप दोपहरिया में
चिडया की चुक - चुक ,
बस ऐसे ही सुनता हूँ
तुम्हरी खटर -पटर घर के काम निपटाते हुए
सुनता हूँ तुम्हारे आँचल की सरसराहट
जैसे कोइ भक्त सुनता है -
कबीर का शब्द या कोई भजन
बस ऐसे ही सुनता हूँ तुम्हे
अपनी धड़कनो में
तुम्हे बजते हुए
जैसे कंही दूर सीलोन रेडियो से आ रही कोई गीत की आवाज़
बस ऐसे ही सुनता हूँ
तुम्हारे की पैड की आवाज़ (दूर से ही )
उस मेसेज की जो तुम मुझे लिख रही होती हो
चुप रह कर
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------------
हूँ तुम्हे प्रण -प्राण से
जब तुम कुछ नहीं बोल रही होती हो
जैसे कोई सुनता है
बहुत ऊपर से बहते हुए जल प्रपात की लहरों को
बस ऐसे ही सुनता हूँ
तुम्हारी चूड़ियों की खनक
जैसे कोई सुनता है
गर्मी की एकांत,चुप दोपहरिया में
चिडया की चुक - चुक ,
बस ऐसे ही सुनता हूँ
तुम्हरी खटर -पटर घर के काम निपटाते हुए
सुनता हूँ तुम्हारे आँचल की सरसराहट
जैसे कोइ भक्त सुनता है -
कबीर का शब्द या कोई भजन
बस ऐसे ही सुनता हूँ तुम्हे
अपनी धड़कनो में
तुम्हे बजते हुए
जैसे कंही दूर सीलोन रेडियो से आ रही कोई गीत की आवाज़
बस ऐसे ही सुनता हूँ
तुम्हारे की पैड की आवाज़ (दूर से ही )
उस मेसेज की जो तुम मुझे लिख रही होती हो
चुप रह कर
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------------
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