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Sunday, 10 September 2017

जलेंगे तपेंगे चलेंगे और सांझ होते ही डूब जायेंगे


जलेंगे तपेंगे चलेंगे और सांझ होते ही डूब जायेंगे
हम सूरज हैं सुबह ताज़ादम होके फिर उग आएंगे

हवा पानी खाद सब कुछ किसी भी जगह  ले लेंगे
हमारी जात इश्क़ है,किसी भी ज़मी पे उग जायेंगे

 दुनिया का कोई भी ग़म हमारे आगे न टिकेगा,,
 कभी चैती कभी फगुआ कभी मेघ मल्हार गायेंगे

तुम अपने यंहा जेहादी आतंकवादी पैदा करते रहो
हम अपनी ज़मीन पे आम महुआ तिलहन उगाएंगे

सिखाते रहिये आप वतन वालों को मज़हबी पाठ
हम भारत वासी सिर्फ योग और प्रेम ही सिखाएंगे


मुकेश इलाहाबादी ----------------------------
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