चूल्हे
पे चढ़ी हांडी भी
आँच पा के खौलने लगती है
और छलक पड़ती है
अगर जल्दी ही न उतारी गयी आग से
हिमालय की बर्फ भी
पिघल जाती है सूरज के ताप से
और फिर नदी से भाप बन उड़ जाती है
और बादल बन बरसती है उमस और गर्मी के खिलाफ
शायद हम हिमालय के ग्लेशियर से भी ज़्यादा
ठन्डे हो चुके हैं ,
नहीं खौलता है खून किसी भी बात पे
मुकेश इलाहाबादी --------------------------
पे चढ़ी हांडी भी
आँच पा के खौलने लगती है
और छलक पड़ती है
अगर जल्दी ही न उतारी गयी आग से
हिमालय की बर्फ भी
पिघल जाती है सूरज के ताप से
और फिर नदी से भाप बन उड़ जाती है
और बादल बन बरसती है उमस और गर्मी के खिलाफ
शायद हम हिमालय के ग्लेशियर से भी ज़्यादा
ठन्डे हो चुके हैं ,
नहीं खौलता है खून किसी भी बात पे
मुकेश इलाहाबादी --------------------------
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