दरिया में आग लगा देती है
इस अदा से मुस्कुरा देती है
गुज़र जाए जिधर से भी वो
गली व शहर महका देती है
उसकी बातों में अजब जादू
हर किसी को बहका देती है
बादल भी टूट के बरस जाएँ
जब अपने गेसू लहरा देती है
मुकेश हँसने पे आ जाए तो
हज़ारों मोती बिखरा देती है
मुकेश इलाहाबादी ----------
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