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Monday, 11 December 2017

इतना सारा दर्द ले कर कहाँ जाऊँ

इतना सारा दर्द ले कर कहाँ जाऊँ
तुमको न बताऊँ,तो किसे बताऊँ 

जिस्म के हर हिस्से पे तो घाव हैं
किसको छुपाऊँ किसको दिखाऊँ

शुबो से शाम तक मसरूफियत है
तूही बता तुझसे मिलने कब आऊँ

तुम पूछते हो किसने दग़ा किया
एक  शख्श  हो तो नाम गिनाऊँ

तू ही मेरी नज़्म तू ही मेरी ग़ज़ल
आ तुझे तेरे नाम की ग़ज़ल सुनाऊँ

मुकेश इलाहाबादी ----------------



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