शूल बन उगने लगे हैं रिश्ते
बदन पे चुभने लगे हैं रिश्ते
अब वो पहले सी गर्मी कँहा
बर्फ सा जमने लगे हैं रिश्ते
वक़्त के हथौड़े की चोट खा
टूटने-बिखरने लगे हैं रिश्ते
दिल से दिल की बात नही
पैसों से नपने लगे हैं रिश्ते
व्हाटस ऐप मोबाइल पे ही
मुकेश निभने लगे हैं रिश्ते
मुकेश इलाहाबादी ----------
बदन पे चुभने लगे हैं रिश्ते
अब वो पहले सी गर्मी कँहा
बर्फ सा जमने लगे हैं रिश्ते
वक़्त के हथौड़े की चोट खा
टूटने-बिखरने लगे हैं रिश्ते
दिल से दिल की बात नही
पैसों से नपने लगे हैं रिश्ते
व्हाटस ऐप मोबाइल पे ही
मुकेश निभने लगे हैं रिश्ते
मुकेश इलाहाबादी ----------
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