काश तुमने मुस्कुरा दिया होता
बदली में चाँद खिल गया होता
अगर परिंदो की तरह पँख होते
मै उड़कर तुम तक पंहुचा होता
तूने दरीचा खोला ही नहीं, वर्ना
मै तेरी गली में रुक गया होता
मेरे पास जज़्बात हैं लफ़ज़ नहीं
वर्ना मैंने,तुझे ख़त लिखा होता
मुकेश इलाहाबादी -----------------
बदली में चाँद खिल गया होता
अगर परिंदो की तरह पँख होते
मै उड़कर तुम तक पंहुचा होता
तूने दरीचा खोला ही नहीं, वर्ना
मै तेरी गली में रुक गया होता
मेरे पास जज़्बात हैं लफ़ज़ नहीं
वर्ना मैंने,तुझे ख़त लिखा होता
मुकेश इलाहाबादी -----------------
No comments:
Post a Comment