अपने सारे ग़मो को छुपा के मिलो
जिससे भी मिलो मुस्कुरा के मिलो
जो कोई बुज़ुर्ग मिल जाये राह में
सर अपना हमेसा झुका के मिलो
क़द तुम्हारा कितना ही बड़ा न हो
अपनों से कभी न इतरा के मिलो
जो चाहत है लोग याद रखें तुम्हे
हर इंसा को अपना बना के मिलो
इक हँसी, तुमको बना देगी गुलाब
जब भी मिलो खिलखिला के मिलो
मुकेश इलाहाबादी ----------------
जिससे भी मिलो मुस्कुरा के मिलो
जो कोई बुज़ुर्ग मिल जाये राह में
सर अपना हमेसा झुका के मिलो
क़द तुम्हारा कितना ही बड़ा न हो
अपनों से कभी न इतरा के मिलो
जो चाहत है लोग याद रखें तुम्हे
हर इंसा को अपना बना के मिलो
इक हँसी, तुमको बना देगी गुलाब
जब भी मिलो खिलखिला के मिलो
मुकेश इलाहाबादी ----------------
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