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Thursday, 21 June 2018

शहर की गली गली छानी है

शहर की गली गली छानी है
बहुत  दिनों आवारगी की है

मेरे पास और  कुछ तो नहीं
फ़क़त तज़ुर्बे मेरी कमाई है

मेरी चाल में ये लड़खड़ाहट
तुम्हारे ईश्क़ की ख़ुमारी है

चले आओ यंहा कोई नहीं है
सिर्फ मै हूँ,  मेरी तन्हाई है

बीते हुए कल की बात न कर
अब से ये ज़िंदगी तुम्हारी है

न कोई चाँद न कोई चराग़
ज़िदंगी अँधेरे में बिताई है

मुकेश इलाहाबादी ----------

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