शहर की गली गली छानी है
बहुत दिनों आवारगी की है
मेरे पास और कुछ तो नहीं
फ़क़त तज़ुर्बे मेरी कमाई है
मेरी चाल में ये लड़खड़ाहट
तुम्हारे ईश्क़ की ख़ुमारी है
चले आओ यंहा कोई नहीं है
सिर्फ मै हूँ, मेरी तन्हाई है
बीते हुए कल की बात न कर
अब से ये ज़िंदगी तुम्हारी है
न कोई चाँद न कोई चराग़
ज़िदंगी अँधेरे में बिताई है
मुकेश इलाहाबादी ----------
बहुत दिनों आवारगी की है
मेरे पास और कुछ तो नहीं
फ़क़त तज़ुर्बे मेरी कमाई है
मेरी चाल में ये लड़खड़ाहट
तुम्हारे ईश्क़ की ख़ुमारी है
चले आओ यंहा कोई नहीं है
सिर्फ मै हूँ, मेरी तन्हाई है
बीते हुए कल की बात न कर
अब से ये ज़िंदगी तुम्हारी है
न कोई चाँद न कोई चराग़
ज़िदंगी अँधेरे में बिताई है
मुकेश इलाहाबादी ----------
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