हालाकि यंहा के लोग गूँगे नहीं हैं बहरे नहीं हैं
हालात ऐसे हैं कि बोलते नहीं हैं सुनते नहीं हैं
नेट पे ही सारे रिश्ते नाते निभाने लगे हैं लोग
होली-दिवाली भी मिलते नहीं हैं जुलते नहीं हैं
रिवायत की तरह हर हाल में निभाए जाता हूँ
अपने शिकवे शिकायत किसी से कहते नहीं हैं
मैंने बोल के कहा लिख के कहा इशारे से कहा
मुकेश तुम्हारे लब किसी तरह खुलते नहीं हैं
मुकेश इलाहाबादी -------------------------
हालात ऐसे हैं कि बोलते नहीं हैं सुनते नहीं हैं
नेट पे ही सारे रिश्ते नाते निभाने लगे हैं लोग
होली-दिवाली भी मिलते नहीं हैं जुलते नहीं हैं
रिवायत की तरह हर हाल में निभाए जाता हूँ
अपने शिकवे शिकायत किसी से कहते नहीं हैं
मैंने बोल के कहा लिख के कहा इशारे से कहा
मुकेश तुम्हारे लब किसी तरह खुलते नहीं हैं
मुकेश इलाहाबादी -------------------------
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