गुफ़ा ,
से निकले आदमी ने,
ज़िंदगी से बहतु लोहा लिया
फिर, इसी लोहे से उसने बनाई
छेनी ,हौथौडी , हल की मूठ
पहिया, पहिये की धूरी
और रथ - जिसपे सवार हो के वो
निकल पड़ा न ख़त्म होने वाले विकास के राजसूय यज्ञ पे
जिसकी समिधा की लड़की के लिए उसे काटने पड़े पेड़
लिहाजा उसने उसी लोहे से बनाई कुल्हाड़ी और
बड़ी - बड़ी आरा मशीने,
राजसूय यज्ञ की सफलता के लिए
उस गुफा के इंसान को अपने ही लोगों से लेना पड़ा लोहा
लिहाज़ा उसने एक बार फिर अपने लोहे से बनाई
तीर तलवार, तोप और मिसाइलें
अपने ही अंदर के लोहे को गला के उसने न केवल राजसूय यज्ञ जारी रखा
बल्कि उसने बनाए बड़े बड़े पुल
कल - कारखाने
लोहे से ढली बड़ी बड़ी इमारतें
अब तो उसी की बनाई मशीनों में ढल रही है
सभ्यता , संस्कृति और धर्म
मुझे तो ऐसा लगता है, कंही ऐसा न हो एक दिन
यही लोहा लेता इंसान अपनी ही बनाई मशीनों में ढल कर
किसी बन्दूक की गोली का छर्रा या तोप का गोला बन कर न निकले
लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी ,
कहे देता हूँ मुकेश बाबू !
से निकले आदमी ने,
ज़िंदगी से बहतु लोहा लिया
फिर, इसी लोहे से उसने बनाई
छेनी ,हौथौडी , हल की मूठ
पहिया, पहिये की धूरी
और रथ - जिसपे सवार हो के वो
निकल पड़ा न ख़त्म होने वाले विकास के राजसूय यज्ञ पे
जिसकी समिधा की लड़की के लिए उसे काटने पड़े पेड़
लिहाजा उसने उसी लोहे से बनाई कुल्हाड़ी और
बड़ी - बड़ी आरा मशीने,
राजसूय यज्ञ की सफलता के लिए
उस गुफा के इंसान को अपने ही लोगों से लेना पड़ा लोहा
लिहाज़ा उसने एक बार फिर अपने लोहे से बनाई
तीर तलवार, तोप और मिसाइलें
अपने ही अंदर के लोहे को गला के उसने न केवल राजसूय यज्ञ जारी रखा
बल्कि उसने बनाए बड़े बड़े पुल
कल - कारखाने
लोहे से ढली बड़ी बड़ी इमारतें
अब तो उसी की बनाई मशीनों में ढल रही है
सभ्यता , संस्कृति और धर्म
मुझे तो ऐसा लगता है, कंही ऐसा न हो एक दिन
यही लोहा लेता इंसान अपनी ही बनाई मशीनों में ढल कर
किसी बन्दूक की गोली का छर्रा या तोप का गोला बन कर न निकले
लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी ,
कहे देता हूँ मुकेश बाबू !
मुकेश इलाहाबादी -------------------------------
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