मैंने आवाज़ तो दी थी किसी को सुनाई न दिया
तनहाई के कुँए में था किसी को दिखाई न दिया
रोशनी कम थी सच्चाई के जुगनू थे मेरे हाथों में
गुप्प अँधेरा था शहर में कुछ भी सुझाई न दिया
मै अकेला था घर में, अकेला ही निकला सफर में
मुकेश किसी ने नम आँखों से मुझे बिदाई न दिया
मुकेश इलाहाबादी -------------------------------
तनहाई के कुँए में था किसी को दिखाई न दिया
रोशनी कम थी सच्चाई के जुगनू थे मेरे हाथों में
गुप्प अँधेरा था शहर में कुछ भी सुझाई न दिया
मै अकेला था घर में, अकेला ही निकला सफर में
मुकेश किसी ने नम आँखों से मुझे बिदाई न दिया
मुकेश इलाहाबादी -------------------------------
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