ठीक दिखता है फिर भी दर्द रिसता है
बद्तमीज़ है ज़ख्म कुरेदो तो हँसता है
बार बार पूछता हूँ,दर्द की दवा क्या है
ज़ख्म सिर्फ मुस्कुराता है चुप रहता है
बहुत कोशिश की ठीक हो जाऊँ मै भी
मगर कोई न कोई ज़ख्म हरा रहता है
हाँफने और गिरने की हद तो दौड़ता हूँ
ज़ख्म भी उतनी तेज़ी से पीछा करता है
बाद मरने के ही वो मेरा पीछा छोड़ेगा
मुझसे पुरानी दोस्ती है ज़ख्म कहता है
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
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