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Wednesday, 18 July 2018

आँखों में अब कोई हसीन ख्वाब नहीं आता


कोई हसीन मंज़र देखा हो, याद नहीं आता
आँखों में अब कोई हसीन ख्वाब नहीं आता

सुर्ख से नीला व तासीर से ठण्डा हो गया है
कित्ता भी खौलाओ लहू में उबाल नहीं आता

न जिस्म में कोई हरकत है न रूह  में जान
मै ज़िंदा हूँ ? अब तो ये भी याद नहीं आता

ज़ुल्म सहने की ऐसी आदत हो चुकी है कि
मेरा भी कोई वज़ूद है ये ख़याल नहीं आता


मुकेश इलाहाबादी -------------------------

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