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Thursday, 26 July 2018

जादुई चादर

तनहाई इक जादुई चादर है 
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मेरे
पास तनहाई की चादर है
जिसपे तुम्हारी यादों के बेल बूटे छपे हैं
इसे बिछा कर  मै बेहद आराम में होता हूँ

अक्सर ये चादर
इक जादुई चादर में तब्दील हो जाती है
चादर उड़ने लगती है
चादर के साथ साथ मै भी उड़ने लगता हूँ
उड़ते - उड़ते चादर दूर बहुत दूर निकल जाती है
रूई के फाहे जैसे बादलों के बीच
जंहा पहुंच के तुम्हारी यादों की ये जादुई चादर के
बेल बूटे सचमुच के बेल बूटों में तब्दील हो जाते हैं
जिनकी खुशबू से सारा आलम खुशबू खुशबू हो गया होता है
चादर हवा में उड़ने लगती है जिसमे से
न जाने कब तुम उड़ती हुई आ जाती हो
और हम न जाने कितनी देर केलि करने लगते हैं
और डूब जाते हैं एक
जादुई दुनिया में
देर और बहुत देर तक
फिर अचानक सब कुछ बदल जाता है
और एक बार फिर
सच मुच् के बेल बूटे चादर के बेल बूटों में तब्दील हो जाते हैं
और तुम भी फिर से हवा में विलीन हो जाती हो
और मै अपने आप को
तन्हाई की चादर में लिपटा पाता हूँ
पर अब मेरे चेहरे पे इक शुकून की मुस्कान होती है

ओ मेरी सुमी !
ओ मेरी जादू की चादर सुन रही हो न ???

मुकेश इलाहाबादी ----------------------------

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