मेरे
कमरे की खिड़की से
चाँद नहीं झांकता
चाँदनी नहीं आती
लिहाज़ा मैंने
अपनी दीवार पे टांगने के लिए
चाँद की तस्वीर बनाने की ठानी
जैसे जैसे ही कैनवास पे लकीरें खींचता गया
तुम्हारी ही सूरत उभर के आयी
लिहाज़ा अब दीवार पे
तुम्हारी तस्वीर लगा के खुश हूँ
अब चाँद के न झाँकने और
चाँदनी के कमरे में न आने का कोई अफ़सोस नहीं
मुकेश इलाहाबादी ---------------------------
कमरे की खिड़की से
चाँद नहीं झांकता
चाँदनी नहीं आती
लिहाज़ा मैंने
अपनी दीवार पे टांगने के लिए
चाँद की तस्वीर बनाने की ठानी
जैसे जैसे ही कैनवास पे लकीरें खींचता गया
तुम्हारी ही सूरत उभर के आयी
लिहाज़ा अब दीवार पे
तुम्हारी तस्वीर लगा के खुश हूँ
अब चाँद के न झाँकने और
चाँदनी के कमरे में न आने का कोई अफ़सोस नहीं
मुकेश इलाहाबादी ---------------------------
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