थोड़ा-थोड़ा सलीका थोड़ी बेतरतीबी है
थोड़ा-थोड़ा शुकून थोड़ी सी बेचैनी है
हंसती भी है और खिलखिलाती भी है
गौर से देखो तो, हर आँखों में नमी है
घोडा -गाड़ी महल अटारी सब मिलेंगे
हर इक दिल में कोई न कोई कमी है
निकलोगे जब तुम मंज़िल पर, राह
कंही उबड़- खाबड़ कंही पे चिकनी है
जीवन भी है भोजन की थाली,कभी
दाल मखनी तो कभी रोटी चटनी है
मुकेश इलाहाबादी -----------------
थोड़ा-थोड़ा शुकून थोड़ी सी बेचैनी है
हंसती भी है और खिलखिलाती भी है
गौर से देखो तो, हर आँखों में नमी है
घोडा -गाड़ी महल अटारी सब मिलेंगे
हर इक दिल में कोई न कोई कमी है
निकलोगे जब तुम मंज़िल पर, राह
कंही उबड़- खाबड़ कंही पे चिकनी है
जीवन भी है भोजन की थाली,कभी
दाल मखनी तो कभी रोटी चटनी है
मुकेश इलाहाबादी -----------------
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