मीठे पानी का दरिया बन जाऊँ क्या
प्यासों की जी भर प्यास बुझाऊँ क्या
नककार खाने में मुझे कौन सुनेगा
मै भी जोर जोर ढोल बजाऊँ क्या
प्यार की कलियाँ सब मसल देते हैँ
वज़ूद मे अपने थोड़े खार उगाऊँ क्या
रिश्तों के पौधे सूख रहे हैं सोचता हूँ
इक बार फिर सब से मिल आऊँ क्या
जिसको देखो झूम रहा है मुकेश
इक दो पैग मै भी पी कर आऊँ क्या
मुकेश इलाहाबादी,,,,,,,,,,,
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