Pages

Saturday, 3 November 2018

मीठे पानी का दरिया बन जाऊँ क्या

मीठे पानी का दरिया बन जाऊँ क्या
प्यासों की जी भर प्यास बुझाऊँ क्या

नककार खाने में मुझे कौन सुनेगा
मै भी जोर जोर ढोल बजाऊँ क्या

प्यार की कलियाँ सब मसल देते हैँ
वज़ूद मे अपने थोड़े खार उगाऊँ क्या

रिश्तों के पौधे सूख रहे हैं सोचता हूँ
इक बार फिर सब से मिल आऊँ क्या

जिसको देखो झूम रहा है मुकेश
इक दो पैग मै भी पी कर आऊँ क्या

मुकेश इलाहाबादी,,,,,,,,,,,

No comments:

Post a Comment