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Thursday, 22 November 2018

फ़िज़ाएं महकने लगती हैं

फ़िज़ाएं महकने लगती हैं
हवाएँ   ठुनकने लगती हैं

तुम्हारे आने से महफ़िल
खुशी से चहकने लगती है

जो रिन्द नहीं उनकी भी
चाल  बहकने  लगती है

बेकाबू हो के मेरी धड़कने
तेज़ तेज़ चलने लगती हैं

मुकेश इलाहाबादी --------

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