किसी अदृश्य बेड़ियों से बंधे हुए
चले जा रहे हैं सिर झुकाये हुए
थका हुआ जिस्म ये कह रहा है
मुद्दतें हो गयी आराम किये हुए
आईने ने मुझसे शिकायत ये की
तुम्हे दिनों हो गये चेहरा देखे हुए
उदासियों के बादल कुछ छंटे तो
याद आया सालों हो गए हँसे हुए
आज बैठे - बैठे ये मै सोच रहा था
इक ज़माना हुआ तुमसे मिले हुए
मुकेश इलाहाबादी ----------------
चले जा रहे हैं सिर झुकाये हुए
थका हुआ जिस्म ये कह रहा है
मुद्दतें हो गयी आराम किये हुए
आईने ने मुझसे शिकायत ये की
तुम्हे दिनों हो गये चेहरा देखे हुए
उदासियों के बादल कुछ छंटे तो
याद आया सालों हो गए हँसे हुए
आज बैठे - बैठे ये मै सोच रहा था
इक ज़माना हुआ तुमसे मिले हुए
मुकेश इलाहाबादी ----------------
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