भाई को भाई से लड़वाएं ऐसे हमारे राम नहीं हैं
अपने लिए मंदिर चाहें, ऐसे हमारे राम नहीं हैं
संसार के ज़र्रे ज़र्रे में जिनकी सत्ता जिनका घर
इक ईमारत में समां जाएँ ऐसे हमारे राम नहीं हैं
मुकेश इलाहाबादी -------------------------------
अपने लिए मंदिर चाहें, ऐसे हमारे राम नहीं हैं
संसार के ज़र्रे ज़र्रे में जिनकी सत्ता जिनका घर
इक ईमारत में समां जाएँ ऐसे हमारे राम नहीं हैं
मुकेश इलाहाबादी -------------------------------
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