रात फिर ग़ज़ले खामोशी सुनाएगी
शब भर फिर तुम्हारी याद आएगी
मै देर तक सोचूंगा तुम्हारे बारे में
फिर-फिर ये आँखे नम हो जाएँगी
उदासी के बादल गरजेंगे - बरसेंगे
आँसुओं से कुहनी भीग जाएगी
शुबो बुलबुल मुंडेर पे फिर आएगी
आवाज़ देते ही फुर्र से उड़ जाएगी
जितना मै दर्द कागज़ पे लिक्खूँगा
उतना, बदनसीबी खिलखिलाएगी
मुकेश इलाहाबादी ----------------
शब भर फिर तुम्हारी याद आएगी
मै देर तक सोचूंगा तुम्हारे बारे में
फिर-फिर ये आँखे नम हो जाएँगी
उदासी के बादल गरजेंगे - बरसेंगे
आँसुओं से कुहनी भीग जाएगी
शुबो बुलबुल मुंडेर पे फिर आएगी
आवाज़ देते ही फुर्र से उड़ जाएगी
जितना मै दर्द कागज़ पे लिक्खूँगा
उतना, बदनसीबी खिलखिलाएगी
मुकेश इलाहाबादी ----------------
No comments:
Post a Comment