Pages

Sunday, 20 January 2019

आईना, मुझे कुछ इस तरह देखता है

आईना,
मुझे कुछ इस तरह देखता है 
जैसे कोई
अजनबी रु ब रु होता है

हाले दिल
अपना ख़ुद से पूछता हूँ
व्यस्त शहर है
कौन किसको पूछता है

अजब रिवायतों का है
शहर अपना 
मुर्दा अपनी मैयत को
ख़ुद ढो रहा है

मुकेश इलाहाबादी ----------------

No comments:

Post a Comment