कुछ - कुछ मुझसे जुलती देखी थी
उसकी आँखों में इक तस्वीर देखी थी
दरिया में जैसे हौले- 2 आग जली हो
कल इक लड़की भीगी भीगी देखी थी
थी चंचल चंचल शोख अदाएँ उसकी
पर जाने क्यूँ थोड़ा सहमी सहमी थी
मुझसे न कुछ बोली न कुछ बतियाई
फिर भी अपनी अपनी सी लगती थी
मुकेश इलाहाबादी ------------------
उसकी आँखों में इक तस्वीर देखी थी
दरिया में जैसे हौले- 2 आग जली हो
कल इक लड़की भीगी भीगी देखी थी
थी चंचल चंचल शोख अदाएँ उसकी
पर जाने क्यूँ थोड़ा सहमी सहमी थी
मुझसे न कुछ बोली न कुछ बतियाई
फिर भी अपनी अपनी सी लगती थी
मुकेश इलाहाबादी ------------------
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