यकीनन
पत्थर भी प्यासे होते होंगे
तभी
सीने में दरिया
और झील बहाते होंगे
आब
की ही मुहब्बत में तो
ये पत्थर दरिया संग बह बह कर
टूटते होंगे
पर्वत से पत्थर
पत्थर से कंकर
कंकर से रेशा - रेशा टूटकर रेत् बनते होंगे
फिर किसी प्रेमी के सीने में सहरा बन बहते होंगे
कि - यकीनन पत्थर भी प्यासे होते होंगे
मुकेश इलाहाबादी -------
पत्थर भी प्यासे होते होंगे
तभी
सीने में दरिया
और झील बहाते होंगे
आब
की ही मुहब्बत में तो
ये पत्थर दरिया संग बह बह कर
टूटते होंगे
पर्वत से पत्थर
पत्थर से कंकर
कंकर से रेशा - रेशा टूटकर रेत् बनते होंगे
फिर किसी प्रेमी के सीने में सहरा बन बहते होंगे
कि - यकीनन पत्थर भी प्यासे होते होंगे
मुकेश इलाहाबादी -------
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