दुपहरिया
सूनसान सड़क पे
धूप की चादर तनी हो
पसीना चुह चुहा रहा हो
तनबदन पे
अचानक
बदरिया बन छा जाओ
तुम,
बरसो खूब बरसो
मै भीगता रहूँ
देर तक बहुत देर तक
जब तक ये सूनी सड़क पार न हो जाए
तब तक
या,
कि ऐसा हो
किसी दिन मै घुल जाऊँ
हवा में
और लिपट जाऊँ
तुम्हारे इर्दगिर्द खुशबू सा
सच ! सुमी ऐसा हो तो कैसा हो ????
मुकेश इलाहाबादी -----------------------
सूनसान सड़क पे
धूप की चादर तनी हो
पसीना चुह चुहा रहा हो
तनबदन पे
अचानक
बदरिया बन छा जाओ
तुम,
बरसो खूब बरसो
मै भीगता रहूँ
देर तक बहुत देर तक
जब तक ये सूनी सड़क पार न हो जाए
तब तक
या,
कि ऐसा हो
किसी दिन मै घुल जाऊँ
हवा में
और लिपट जाऊँ
तुम्हारे इर्दगिर्द खुशबू सा
सच ! सुमी ऐसा हो तो कैसा हो ????
मुकेश इलाहाबादी -----------------------
No comments:
Post a Comment