फूल खिलें
और ! खिले ही रह जाएं
अपनी खुशबू और ख़ूबसूरती लिए दिए
सुबह ! सूरज की किरणों के उतरने के साथ ही
बुलबुल मुंडेर पे आ बैठे
पंचम सुर में गाए और
गाती ही रहे अनंत काल तक
ठीक उसी वक़्त
जब तुम मुझसे मिलने आई हो
हर साल की तरह बसंत आये
और ठिठक जाए द्वारे मेरे
या कि, ठीक उसी वक़्त
जब मै मल रहा होऊँ गुलाल
तुम्हारे गालों पे
फागुन आये और ठहर जाए
जैसे खिल के ठहर गया है
ये काला तिल तुम्हारे गालों पे
हमेशा - हमेशा के लिए
सच ! सोचो सुमी किसी दिन
ऐसा हो तो कैसा हो ??
मुकेश इलाहाबादी -----------------------
और ! खिले ही रह जाएं
अपनी खुशबू और ख़ूबसूरती लिए दिए
सुबह ! सूरज की किरणों के उतरने के साथ ही
बुलबुल मुंडेर पे आ बैठे
पंचम सुर में गाए और
गाती ही रहे अनंत काल तक
ठीक उसी वक़्त
जब तुम मुझसे मिलने आई हो
हर साल की तरह बसंत आये
और ठिठक जाए द्वारे मेरे
या कि, ठीक उसी वक़्त
जब मै मल रहा होऊँ गुलाल
तुम्हारे गालों पे
फागुन आये और ठहर जाए
जैसे खिल के ठहर गया है
ये काला तिल तुम्हारे गालों पे
हमेशा - हमेशा के लिए
सच ! सोचो सुमी किसी दिन
ऐसा हो तो कैसा हो ??
मुकेश इलाहाबादी -----------------------
No comments:
Post a Comment