नम्र तो हैं पर मग़रूर बहुत हैं
लोग यहाँ के मशरूफ बहुत हैं
जिस्म तो पास पास हैं मगर
दिल इक दूसरे से दूर बहुत हैं
रूह पे गर्द की परत दर परत
चेहरे पे बनावटी नूर बहुत हैं
मुकेश इलाहाबादी -------------
लोग यहाँ के मशरूफ बहुत हैं
जिस्म तो पास पास हैं मगर
दिल इक दूसरे से दूर बहुत हैं
रूह पे गर्द की परत दर परत
चेहरे पे बनावटी नूर बहुत हैं
मुकेश इलाहाबादी -------------
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