मेरे
घर में भी एक चिड़िया है
कुछ
काली कुछ भूरी
आँखों वाली चिड़िया
जो हर वक़्त उड़ती फिरती है
पूरे घर में
कभी बेड रूम - कभी ड्राइंग रूम
कभी बॉलकनी तो कभी किचन
अक्सर जब वो उड़ -उड़ के थक चुकी होती है
तब आते ही
मेरे कंधे पे अपनी चोंच रख के
आँखों को नचाती है
न जाने क्या -क्या इशारे करती है - कहती है
सुनती है तब मै सिर्फ और सिर्फ
उस चिड़िया को मन्त्र बिद्ध सा देखता हूँ
कुहकते हुए
और उस की आँखों की भाषा अपनी हथेली से
समझने के लिए
उसे सहलाता हूँ
तो वह
हंसती हुई फिर से
फुर्र - फुर्र उड़ जाती है
अक्शर किचन में ही उड़ के जाती है
और तब मै मुक्सुराता हुआ - चाय के इंतज़ार में होता हूँ
मुकेश इलाहाबादी --------------------------
घर में भी एक चिड़िया है
कुछ
काली कुछ भूरी
आँखों वाली चिड़िया
जो हर वक़्त उड़ती फिरती है
पूरे घर में
कभी बेड रूम - कभी ड्राइंग रूम
कभी बॉलकनी तो कभी किचन
अक्सर जब वो उड़ -उड़ के थक चुकी होती है
तब आते ही
मेरे कंधे पे अपनी चोंच रख के
आँखों को नचाती है
न जाने क्या -क्या इशारे करती है - कहती है
सुनती है तब मै सिर्फ और सिर्फ
उस चिड़िया को मन्त्र बिद्ध सा देखता हूँ
कुहकते हुए
और उस की आँखों की भाषा अपनी हथेली से
समझने के लिए
उसे सहलाता हूँ
तो वह
हंसती हुई फिर से
फुर्र - फुर्र उड़ जाती है
अक्शर किचन में ही उड़ के जाती है
और तब मै मुक्सुराता हुआ - चाय के इंतज़ार में होता हूँ
मुकेश इलाहाबादी --------------------------
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