हम अपनी ही धुन में जा रहे थे
तुम्हारा ही नाम गुनगुना रहे थे
तुम मुँह चिढ़ा के भाग गयी तो
तेरी इस अदा पे मुस्कुरा रहे थे
कागज़ पे बेतरतीब लकीरें नहीं
तेरा नाम लिख के मिटा रहे थे
लोग समझते रहे मुस्कुरा रहा हूँ
दरअसल अपना ग़म छुपा रहे थे
तेरी दोस्ती के लायक हो जाऊँ
ख़ुद को इस क़ाबिल बना रहे थे
मुकेश इलाहाबादी ,,,,,,,,,,,,,,,,
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