मै भी नाराज़ होऊँ कोई मुझे भी मनाये तो
कोई लतीफ़ा सुनाए और मुझको हँसाए तो
बहुत सर्द मौसम है ये अलाव से न जाएगी
अपनी मुहब्बत का कोई अलाव जलाये तो
हमने तो अजनबियों को भी अपना बनाया
कोई शिद्दत से मुझको भी गले लगाए तो
मुद्दतों हुई तनहा बैठे हुए वीराने में,चाहत है
मुकेश कभी कोई मुझसे भी मिलने आये तो
मुकेश इलाहाबादी --------------------
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