न कलेंडर से,
न आले से
न अलगनी से
मेरे कमरे की दीवारें.
अब,
बात करती नहीं किसी से
न आले से
न अलगनी से
मेरे कमरे की दीवारें.
अब,
बात करती नहीं किसी से
तेरे जाने के बाद से
गुलाबी न रहीं
सभी दीवारें जर्द हो गयी हैं,
दर्द की नमी से
गुलाबी न रहीं
सभी दीवारें जर्द हो गयी हैं,
दर्द की नमी से
रोशनदान पे
कबूतर भी बैठा रहता है
बड़ी खामोशी से
कबूतर भी बैठा रहता है
बड़ी खामोशी से
मै भी,
नहीं कहता अपना
रंजो ग़म किसी से
नहीं कहता अपना
रंजो ग़म किसी से
मुकेश इलाहाबादी,,,
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