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Friday, 15 May 2020

ओ, प्रकृति की सुन्दरतम कृति,

ओ,
प्रकृति की सुन्दरतम
कृति,
सुदीर्घ नयनो वाली
मुझे मालूम है
चिडियों की चहचहाहट सुन के तुमने
अभी अभी अपनी पलकें खोली हैं, पर
अभी तुम बिस्तर से मत उतरना
अभी सूरज अपनी सुनहरी किरणों से
बुन रहा है एक
सुनहरा गलीचा
तुम्हारे लिए
जिसपे अपने नाजुक पैर रख के आना बाल्कनी पे
जंहा तुम्हारा इंतजार करता मिलेगा
रात भर ओस मे भीगता
जागता तुम्हारी एक झलक के लिए खड़ा
यूलिपटस का पेड़
ओ, दीर्घ नेत्रों वाली सुन्दरी अभी बुन लेने दो सूर्य को एक
एक सुनहरी कालीन
तुम्हारे लिए
सुप्रभात ..
मुकेश इलाहाबादी,,,,,

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