मुझसे ज़माना है रूठा हुआ
मै इक खिलौना हूँ टूटा हुआ
रहने दो न समेट पायेगा तू
पारा हूँ ज़मी पे बिखरा हुआ
पलट के न लौट पाऊँगा मै
कि ज़माना हूँ मै गुज़रा हुआ
चेहरा धुंधला नज़र आएगा
कि आईना हूँ मै चटका हुआ
साथ मेरे मत कदम बढ़ा तू
मुसाफिर हूँ मै भटका हुआ
मुकेश इलाहाबादी ------------
मै इक खिलौना हूँ टूटा हुआ
रहने दो न समेट पायेगा तू
पारा हूँ ज़मी पे बिखरा हुआ
पलट के न लौट पाऊँगा मै
कि ज़माना हूँ मै गुज़रा हुआ
चेहरा धुंधला नज़र आएगा
कि आईना हूँ मै चटका हुआ
साथ मेरे मत कदम बढ़ा तू
मुसाफिर हूँ मै भटका हुआ
मुकेश इलाहाबादी ------------
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