तेरी ज़ुल्फ़ों के ये लच्छे लच्छे
उलझे हैं जिसमे अच्छे -अच्छे
सभी फंस जाते हैं तेरे जाल में
बूढ़े हों जवान हों या कि बच्चे
तूने मुझे भी कर दिया दीवाना
वर्ना हम तोथे बेहद सीधे सच्चे
तपते हुए मौसम में तेरे ये गाल
अमिया जैसे लगते कच्चे पक्के
सुमी तेरी इन मासूम अदाओं पे
मुकेश मर जायेगा हँसते हँसते
मुकेश इलाहाबादी ----------
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