मै ज़मी पे वो फ़लक पे टहलता है
चाँद मुझसे दूरी बना के चलता है
देखना चाहता हूँ उसे बेनकाब पर
शर्मो ह्या का घूंघट डाले रखता है
कभी छुपता कभी दिखता है पर
चाँद मुझको ही छलिया कहता है
मैंने कहा मै तुझे प्यार करता हूँ
सुन के मुस्कुराता है चुप रहता है
चाँद से कहा कभी ज़मी पे तो आ
उसने कहा इंसानो से डर लगता है
मुकेश इलाहाबादी ----------------
चाँद मुझसे दूरी बना के चलता है
देखना चाहता हूँ उसे बेनकाब पर
शर्मो ह्या का घूंघट डाले रखता है
कभी छुपता कभी दिखता है पर
चाँद मुझको ही छलिया कहता है
मैंने कहा मै तुझे प्यार करता हूँ
सुन के मुस्कुराता है चुप रहता है
चाँद से कहा कभी ज़मी पे तो आ
उसने कहा इंसानो से डर लगता है
मुकेश इलाहाबादी ----------------
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