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Tuesday, 7 July 2020

काश ! तुम्हारी यादें

काश !
तुम्हारी यादें
ख़त होतीं
जिन्हे लौटा सकता
ब्रेक अप के बाद
या की
व्हाट्स एप पे भेजे मेसज होतीं
जिन्हे डिलीट कर के
आँखे बंद कर के कुछ देर
चुप चाप बैठा जा सकता
या फिर
तुम्हारी यादें
कोई तुड़ा मुड़ा नोट
या रेज़गारी होती
जिसे किसी अलमारी या आले पे
रख भूल सकता
कम से कम कुछ दिनों या
कुछ वर्षों के लिए ही सही
मुकेश इलाहाबादी -------

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