कोई भी ज़ख्म भरते भरते भरता है
किसी को भूलने में वक़्त लगता है
दिल का क्या छन्न से टूट जाता है
जिस्म को मरने में वक़्त लगता है
अगर इंसान को खिलौना कहते हो
तो खिलौने में चाबी कौन भरता है
बर्फ और इंसान की सिफ़त एक सी
एक आग से दूसरा ग़म से गलता है
जब से इंसानियत वहसी हो गयी है
मुक्कू मुझे जानवर बेहतर लगता है
मुकेश इलाहाबादी -------------------
किसी को भूलने में वक़्त लगता है
दिल का क्या छन्न से टूट जाता है
जिस्म को मरने में वक़्त लगता है
अगर इंसान को खिलौना कहते हो
तो खिलौने में चाबी कौन भरता है
बर्फ और इंसान की सिफ़त एक सी
एक आग से दूसरा ग़म से गलता है
जब से इंसानियत वहसी हो गयी है
मुक्कू मुझे जानवर बेहतर लगता है
मुकेश इलाहाबादी -------------------
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