ठीक
उसी वक़्त आज भी
देखूँगा
मै
रोज
की तरह पृथ्वी को
पृथ्वी अपनी धुरी पे
घूमत कर
ठीक उसी जगह आते हुए
जहाँ से
सूरज
ठीक तुम्हारी खिड़की लांघता हुआ
अपनी सुरमई किरणे
तुम्हारे दूधिया गालों पे बिखेर देता है
और तुम उसकी
गुनगुनाहट से
अपनी आँखे मलती हुई
बालकॉनी पे आ जाती हो
सुबह का सूरज देखने
ठीक उसी वक़्त
मै फिर देखूँगा
चुपके से
सूरज और चाँद को
एक साथ उगे हुए
मुकेश इलाहाबादी --------
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