तुझे देखूँ तुझे सोचूँ तुझे चाहूँ तुझे मह्सूसूँ
फिर उँगलियों के पोरों से हौले - हौले छू लूँ
किसी सावन की घटा से कम नहीं तेरे गेसू
तू अपनी भीगी ज़ुल्फ़ें झटके और मै भीगूँ
हकीकत में तो न आओगे मालूम है हमको
ख्वाब में ही आने का वादा करो तो मै सोऊँ
ईश्क़ के समंदर किनारे ये जो चांदी के रेत है
आ जाओ तुम्हारे संग ख्वाबों के घरौंदे रूधूँ
मुकेश बड़ा जी उदास उदास सा रहे है मेरा
बैठ पास मेरे तेरे काँधे पे सर रख कर रो लूँ
मुकेश इलाहाबादी -------------------------
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