डाल से लेकर टहनी तक हरा न था
पेड़ के जिस्म पे एक भी पत्ता न था
अब न फल आते हैं न परिंदे आते हैं
बूढा शजर हमेशा से तो ऐसा न था
वो बंद गली का आखिरी मकान था
लौट आने के सिवा कोइ चारा न था
उसे खत लिखता भी तो लौट आता
पास मेरे उसके घर का पता न था
मैंने तो मासूमियत देख दोस्ती की
वो इतना चालबाज होगा पता न था
मुकेश इलाहाबादी ----------------
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