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Wednesday, 9 September 2020

डाल से लेकर टहनी तक हरा न था

 डाल से लेकर टहनी तक हरा न था 

पेड़ के जिस्म पे एक भी पत्ता न था 


अब न फल आते हैं न परिंदे आते हैं 

बूढा शजर हमेशा से तो ऐसा न था 


वो बंद गली का आखिरी मकान था 

लौट आने के सिवा कोइ चारा न था 


उसे खत लिखता भी तो लौट आता 

पास मेरे उसके घर का पता न था 


मैंने तो मासूमियत देख दोस्ती की 

वो इतना चालबाज होगा पता न था 


मुकेश इलाहाबादी ----------------




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