पसीना उसकी करियाई पीठ पे ग़ज़ल लिखती है
ज़िंदगी फावड़ा गैंती बसूली से ग़ज़ल लिखती है
गिद्ध ऐ सी ऑफिस और ऐ सी गाड़ी में बैठते हैं
झूठ और मक्कारी उनके लिए ग़ज़ल लिखती है
जिनकी आँखे झील चेहरा महताब सांसे चन्दन
ऐसे नाज़नीनों की हर अदाएं ग़ज़ल लिखती हैं
सूर कबीर तुलसी मीरा रसखान पैदा होते हैं तो
ऊनकी भक्ति ग्यान और बातें ग़ज़ल लिखती हैं
हर दिल आबाद नहीं होता कुछ खंडहर भी होते हैं
वहां उधड़े पलस्तर टूटी दीवारें ग़ज़ल लिखती हैं
मुकेश इलाहाबादी ----------------------------
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