तेरी यादों के गुलदस्ते हैं
ये हरदम महके रहते हैं
तेरे साथ होता हूँ तो हम
ग़म में भी हँसते रहते हैं
हर ख्वाहिश इक परिंदा
तुझसे ही चहके रहते हैं
साँसे भी कुछ कहती हैं
गले लिपट कर सुनते हैं
आ जाओ गोरी अब तो
नौका विहार पे चलते हैं
मुकेश इलाहाबादी -----
उम्दा ग़ज़ल।
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