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Tuesday, 12 June 2012

तिलचटटा

बैठे ठाले की तरंग ----------

तिलचटटा
अपनी नाक पर उगी
तलवार सी मूंछो को लेकर
किसी सेनापति से बहुत खुश  था
और नाली की जाली में
अलमस्त घूमता फिरता
या बिलबिलाता था
पर एक दिन उसे
न जाने क्या सूझी
शायाद उसे अपने तिलचटटेपन के कारण
यह बात सूझी होगी
और वह ब्रम्हांड़ नापने चल दिया
अपने कमजोर पैरों और
तलवार सी मूंछो के साथ
वह बहुत खुश था नाली के आगे
चिकने लम्बे फर्श को देखकर
वह उसपे रपटने और दौड़ने लगा
अचानक चिकने फर्श के मालिक ने देखा
इस साफ सुथरे फर्श पर
तिलचटटा !!!
झट उसने ‘हिट मी’ के बटन को दबाया
और कुछ गैस निकल कर
तिलचटटे को दर का दर खत्म कर गयी
जिस तरह कुछ लाख नाजियों को
गैस चैम्बर मे खत्म कर दिया गया था
कुछ सिरफिरों के दवारा
तिलचटटा,
अब फिर नाली मे था
अपनी मूछों के साथ
पर अब वह मर चुका था।

मुकेश इलाहाबादी ---------------------


















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