उम्र लगा दी ख्वाब सजाने मे
इक लम्हा लगा बिखर जाने मे
कासिद अब तक संदेशा न लाया
शायद कुछ वक्त लगा हो मनाने मे
अब जो चंद उखडी साँसे बची है
तुमने बहुत देर लगा दी आने मे
ग़म मे तो सभी संजीदा होते हैं
बहुत मुस्किल है मुस्कुराने मे
जिक्रे यार हमसे अब न कीजिये
बहुत वक्त लगा है उसे भुलाने मे
मुकेश इलाहाबादी ..............
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