रिश्तों की गुत्थी सुलझाउं कैसे ?
रुठ गया है मेरा यार मनाऊँ कैसे ?
अब के बरस बनवाना था झुमका,,
इस महंगाई मे वादा निभाऊं कैसे
दर्द ही दर्द बह रहा है जिगर मे,,
दर्दे दरिया के पार जाऊं कैसे ?
दश्त है तीरगी है औ राह मे काटे
अब तू ही बता तेरे दर आऊँ कैसे
फैसला दे रहे हो बिना कुछ पूछे,,
अपनी बेगुनाही बताउं मै कैसे ?
मुकेश इलाहाबादी .................
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