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Tuesday, 2 July 2013

ओढ कर हमने मासूसी का कफ़न,

ओढ कर हमने मासूसी का कफ़न,
कर लिये अपने सारे अरमॉ दफ़न

फक्त इक बार और देख लूं तुझे
फिर छोड दूं हमेश को तेरा वतन

मै तो मौसम बहार हूं चला जाउंगा
फिर देखना तुम अपना उजडा चमन

भले ही दर्दो ग़म से लबरेज है मुकेश
फिर भी गाउंगा औ मुस्कुराउंगा मगन
मुकेश  इलाहाबादी ....................

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